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Wednesday, July 21, 2010

ब्रह्मस्थल है,आपके घर का मर्म स्थल



आकाश हमारा पिता है, जो हमें सुरक्षा प्रदान करता है एवं पृथ्वी हमारी माता है जो हमें संरक्षण प्रदान करती है। मानव इन दोनों पालनकर्ता शक्तियों के मध्य में स्थित है एवं उसकी सम्पूर्ण गतिविधियाँ आकाश एवं पृथ्वी की ऊर्जा से पूर्णतया प्रभावित रहती है। अन्तरिक्ष एवं धरती की इस चेतना को उजागर करता है वास्तु। पृथ्वी की चुम्बक हैं। इन दो शक्तिशाली ऊर्जाओं की चेतना का स्पंदन एवं परस्पर सम्बन्ध अत्यन्त विलक्षण है, जो किसी भी स्थान पर निवास या कार्य करने वाले मनुष्य तथा उसके आसपास की जड़ अथवा चेतन वस्तुओं को अदृश्य परन्तु अद्भुत रूप से प्रभावित करने की क्षमता रखता है। पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि एवं वायु इन पंचतत्वों तथा दसों दिशाओं के कल्याणकारी सूत्र एवं सिद्धान्त ही वास्तु शास्त्र की मूल अवधारणा है। प्रकृति के इन नियमों का पालन मनुष्य किस तरह शारीरिक एवं मानसिक विकास हेतु करके सुखी एवं सम्पन्न रहे, यही वास्तु शास्त्र की नींव है। किसी भी निर्मित अथवा खुले स्थल का केन्द्र बिन्दु उस स्थान का हृदय होता है एवं पायरा विज्ञान की भाषा में इसे पायरा सेन्टर कहते हैं। यह केन्द्र बिन्दु अत्यन्त सूक्ष्म परन्तु सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। प्रकृति के पंचतत्वों की ऊर्जा विभिन्न दिशाओं से आकर किसी भी स्थल के केन्द्र विन्दु पर ही एकत्रित होती है एवं वहीं से अपने निर्दिष्ट स्थान को प्रभावित करती है। वास्तु मे यह केन्द्र बिन्दु ब्रह्मस्थान कहलाता है। अत: प्रत्येक स्थान, जहाँ हम निवास अथवा कार्य करते हैं, वहां के ब्रह्मस्थान को स्वच्छ एवं सुरक्षित रखना परम आवश्यक होता है। पौराणिक दृष्टिकोण से भी देखें तो ब्रह्म स्थान, यानी ब्रह्मा का स्थल। ब्रह्मा के चार सिर हैं और उसी प्रकार किसी भी स्थान का ब्रह्म स्थल मध्य में स्थित रह कर ब्रह्मा की तरह उस स्थान के चतुर्दिक देखता है। किसी भी दिशा के दोषपूर्ण होने पर अगर उस दिशा से प्राप्य ऊर्जा अगर ब्रह्मस्थल तक नहीं पहुंचती हैं तो स्वभावत: ब्रह्मस्थल की लाभकारी दृष्टि से वह दिशा वंचित रह जाती है। फलत: वहाँ नकारात्मक ऊर्जा व्याप्त होकर वहाँ के निवासियों के जीवन को अपने स्वाभावानुसार प्रभावित करके कष्ट एवं दु:ख का कारण न जाती है। साधारण सी बात है। किसी भी देश, राज्य, शहर का संचालन वहाँ का केन्द्र ही करता है। सहज रूप से समझें तो भारत का केन्द्र 'दिल्ली, पश्चिम बंगाल का केन्द्र 'कोलकाता और कोलकाता का केन्द्र 'रायटर्स बिल्डिग। जहाँ केन्द्र की नजर नहीं पड़ती, वहाँ क्या हालत रहती है यह सभी जानते है। अत: केन्द्र की कृपादृष्टि ही सर्वोपरि कही जा सकती है।
- सुशील कुमार मोहता, वास्तु परामर्शदाता एवं पायरा वास्तु विशेषज्ञ

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