सुरसा के मुख की तरह बढ़ती जनसंख्या के फलस्वरूप, सम्पूर्ण विश्व में, विशेषकर विकासशील देशों के शहरों एवं कस्बों में प्राचीन स्थपत्य कला के अनुसार भवन निर्माण हेतु उपयुक्त भूमि का दिन-प्रतिदिन अभाव होता जा रहा है। जो भी वास्तु-सम्मत भूमि उपलब्ध है, वह इतनी महंगी हो गई है कि उसे खरीद कर वहां मकान बनाना सामान्य व्यक्ति के लिये असम्भव सा हो गया है। भूमि की इस कमी का ही परिणाम है - बहुमंजिली इमारतों (फ्लैट सिस्टम) का निर्माण। भारतीय वास्तु शास्त्र में वर्णित आश्चर्यजनक एवं कल्याणकारी सूत्रों को लेकर आज समस्त विश्व में शोध हो रहे हैं एवं वास्तु के प्रति एक नयी चेतना का सृजन हो रहा है।
अमेरिका, जर्मनी, हांगकांग, सगापुर जैसे आधुनिक एवं विकसित देशों में भी वास्तु पद्धति के अनुसार निर्माण को प्राथमिकता दी जा रही है। अमेरिका के लास एंजिलिस शहर में भारतीय स्थापत्य कला के अनुसार विश्व का पहला भवन बनाया गया है। हांगकांग, सिंगापुर जैसे शहरों में तो जमीन खरीदने के बाद बिल्डर एवं प्रोमोटर, पहले वास्तु-शास्त्री से सलाह करते हैं, फिर आर्किटेक्ट को कार्य सौंपते हैं। मलेशिया एवं सिंगापुर की यात्रा के दौरान, वहां के लोगों की वास्तु-कला के प्रति रुचि, मान्यता एवं जागरूकता देखकर मुझे अत्यन्त सुखद आश्चर्य हुआ और यह महसूस हुआ कि शायद इसलिये समृद्धि एवं खुशी इनके जीवन में सहज ही उपलब्ध है। हालांकि महानगरों में निर्मित बहुमंजिली इमारतों या मकानों में वास्तु-नियमों का शत-प्रतिशत पालन करना अत्यन्त जटिल होता है, फिर भी निर्माण के पूर्व उचित मार्गदर्शन लेकर बिल्डर एवं प्रमोटर ऐसे फ्लैटों की संरचना अत्यन्त आसानी से कर सकते हैं, जिससे उनका पैसा कमाने का मकसद भी पूरा हो सके और उनके खरीददार भी स्वस्थ एवं सुखी जीवन बिता सकें।
वास्तु-दोष से युक्त फ्लैट, जीवन में अनेक कठिनाईयों एवं कष्ट का कारण बन सकते हैं, जीवन भर की कमाई से अपने सपनों का संसार बसाने के पहले जरा गौर करें -
* कहीं आपके मकान के पूर्व एवं उत्तर की अपेक्षा पश्चिम एवं दक्षिण में अधिक खाली जगह तो नहीं है ?
* कहीं आपके फ्लैट के पश्चिम या दक्षिण दिशा में तालाब या नदी तो नहीं है, यह दोष विशेष कर नीचे की मंजिल पर रहने वालों को अधिक प्रभावित करता हैं।
* कहीं आपके मकान का मुख्य द्वार एवं अहाते की चारदीवारी, दोनों ही नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) में तो नहीं है ?
* कहीं आपके मकान की भूगर्भीय पानी की टंकी आग्नेय या नैऋत्य दिशा में तो नहीं है, ऐसी स्थिति में विशेषज्ञ की सलाह लेकर उसका निदान जरूर करवायें।
* कहीं आपके बंगले या फ्लैट की चारदीवारी विभिन्न दिशाओं में कटी या बढ़ी हुई तो नहीं है, ऐसी स्थिति अवांछित परेशानियों का कारण न सकती है।
* कहीं आपकी मंजिल की लिफ्ट या सीढ़ी का समावेश आपके फ्लैट की चारदीवारी के अन्दर तो नहीं कर दिया गया हैं ? यह अत्यन्त गम्भीर वास्तु-दोष हो सकता है।
* आपके डुपलेक्स फ्लैट की सीढ़ी कहीं ईशान या ब्रह्मस्थान पर तो नहीं है ?
* कहीं आपके फ्लैट या मकान में उत्तर एवं पूर्व का हिस्सा बन्द दीवारों से तो नहीं ढंका है, ऐसी स्थिति में वहां के निवासी अत्यावश्यक प्राकृतिक ऊर्जा से वंचित रह जाते हैं।
* कहीं आपके घर में जहां-तहां ऊंचे चबूतरों का निर्माण करके वहां टायलेट तो नहीं बना दिये गये हैं ? ऐसी स्थिति गृह-स्वामी को स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों से ग्रस्त रख सकती है ?
* कहीं आपकी पहली या दूसरी मंजिल के फ्लैट में मुख्य द्वार या खिड़कियों के सामने ट्रांसफार्मर या मोबाइल फोन के टावर तो नहीं लगे हैं ?
* कहीं आपके मकान में रसोई, टायलेट, पूजाघर का निर्माण अगल-बगल या आमने-सामने तो नहीं किया गया है, साधारण सा लगने वाला यह दोष अत्यन्त नकारात्मक स्थिति पैदा कर सकता है।
* कहीं आपके फ्लैट की चारदीवारी के अन्दर खोखलापन तो नहीं, जो आपके जीवन में खोखलापन नहीं ला दे ?
'कैसा भी बना दो, माल तो बिक ही जायेगा, की मानसिकता के कारण ही ऐसे दोष-युक्त मकानों या फ्लैटों का निर्माण कर दिया जाता है। फलस्वरूप, बनाने वाले तो येन-केन प्रकारेण अपनी तिजोरी भर लेते हैं, परन्तु वहां रहने वालों का सपनों का महल बस सपना ही बन कर रह जाता है, अत: दोस्तों घर नया बसाने के पहले, परखें वास्तु-विकार। आशियाना बनता नहीं है, जिन्दगी में बार-बार।
जरा आजमा कर तो देखें -
अपने फ्लैट या कार्यस्थल के मध्यस्थल (ब्रह्मस्थान) पर नित्य धातु के किसी पात्र में कपूर जला कर, अग्नि देवता से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने की प्रार्थना करें,
देखिये ! जीवन में दिन-प्रतिदिन कैसा सकारात्मक परिवर्तन प्राप्त होता है। अगर यह क्रिया ''पिरामिड यंत्र में सम्पादित की जाये, तो आश्चर्यजनक परिणाम मिल सकते हैं।
-सुशील कुमार मोहता
वास्तु परामर्शदाता एवं पायरा वास्तु विशेषज्ञ
Friday, July 23, 2010
आशियाना नहीं बनता है, जिन्दगी में बार-बार
Posted by Sushil Kumar Mohta at 1:09 AM
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