सम्पूर्ण विश्व में तेजी से फैलते वास्तु-शास्त्र के महत्व एवं महत्ता ने यह स्थापित कर दिया है कि मानव जीवन में तनाव, बीमारी, असफलता, अनबन एवं असंतोष जैसी अनेक समस्याओं का कारण मूलत: वास्तु के नियमों की प्रतिकूलता होती है। जितने गहरे वास्तु दोष किसी स्थान पर होते हैं, उतनी ही समस्याऐं वहां के निवासियों को त्रस्त करती रहती हैं। अधिकांशत:, वास्तु-दोषों से अवगत होते हुए भी लोग तोड़-फोड़ के डर से, अनहोनी के डर से या वास्तु-विशेषज्ञ की फीस के डर से टाल मटोल करते रहते हैं एवं असमंजसवश निर्णय लेनें में बरसों लगा देते हैं।
परिणामस्वरूप, नकारात्मकता उनके जीवन का हिस्सा न जाती है एवं वे आसानी से प्राप्य सुख एवं समृद्धि से वंचित रह जाते हैं। छोटी-छोटी एवं नगण्य लगने वाली वास्तु सम्बन्धी असावधानियों आपके जीवन में उथल-पुथल मचाकर रख सकती हैं। अगर आपको भी लगता है कि जीवन में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है, तो जरा गौर करें -
* कहीं आपने दक्षिण-पूर्व के कमरे में नीला एवं उत्तर-पूर्व के कमरे में नारंगी या लाल रंग तो नहीं करवा रखा है ?
*कहीं आपने चंदन या कुंकुम के छींटे मार-मार कर देवी-देवताओं के नयन एवं चेहरे तो नहीं ढंक दिये हैं।
* कहीं आपने गणेश-लक्ष्मी या लाफिंग बुद्ध को आलमारी में बन्द करके तो नहीं रखा है?
* कहीं आपने पलंग के सिरहाने में दर्पण तो नहीं जड़वा रखे हैं ?
* कहीं आपने घर की दीवारों पर तितलियों के चित्र तो नहीं टांग रखे हैं ?
* कहीं आपने शयन कक्ष में अकेली या उदास औरत के चित्र या शो-पीस तो नहीं सजा रखे हैं?
* कहीं आपके घर, कार्यालय या कारखाने के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) का फर्श अन्य दिशाओं के फर्श से ऊंचा तो नहीं है?
* कहीं आपने ईशान कोण या उत्तर मध्य के कमरों में कबाड़ तो नहीं भर रखा है ?
* कहीं वे कमरे बहुधा अन्धकारमय तो नहीं रहते हैं?
* कहीं आपके घर के दक्षिण-पश्चिम का हिस्सा अन्य दिशाओं की अपेक्षा हल्का, खुला एवं नीचे तो नहीं है ?
* कहीं आपके फ्लैट या मकान का उत्तर-पूर्व, उत्तर, दक्षिण-पूर्ण, दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम कोना कटा हुआ तो नहीं है?
* कहीं आप पूजा के बहाने नित्य ईशान में हवन तो नहीं करते हैं ?
* कहीं आपने ईशान में भारी-भरकम चबूतरा या पत्थरों का मंदिर तो नहीं बनवा रखा है ?
* कहीं आपके ईशान एवं उत्तर को फ्लाई ओवर, रेलवे पुल या ऊंची इमारतें व्यवधान तो नहीं पहुंचा रही हैं ?
* कहीं आपके मकान के ब्रह्मस्थान (मध्य) में बोर वेल, भूगर्भ पानी की टंकी या कुंआ तो नहीं है?
* कहीं आपने मुख्य द्वार के आस-पास नुकीले पौधे या जूतों की आलमारी तो नहीं लगा रखी है ?
* कहीं आपने अपने घर में जहाँ-तहाँ विभिन्न प्रकार के दर्पण तो नहीं लगा रखे हैं ?
* कहीं आपके घर की छत पर ईशान कोण में पानी की टंकी तो नहीं है ?
* कहीं आपके घर के दरवाजे या खिड़की के सामने मन्दिर, मस्जिद या कब्रिस्तान तो नहीं है?
* कहीं आपने ईशान के कमरे का पलंग ईशान की दीवार से तो नहीं लगा रखा है?
* कहीं आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) के कोने में आप दक्षिण-पूर्व की दीवार के साथ लगे बिस्तर पर तो नहीं सोते हैं?
* कहीं आपकी रसोई में सिंक एवं चूल्हा पास-पास तो नहीं है?
अगर उपरोत्त प्रश्नों में से किसी भी प्रश्न का जवाब अगर.. हाँ.. में है, तो निश्चित रूप से वास्तु-दोष आपके जीवन में स्वास्थ्य, सुख एवं समृद्धि के मार्ग में बाधक बन रहा है।
भली-भांति समझकर, उनका निदान कीजिये।
जरा आजमा कर देखें -
अपनी रसोई के चावल के कनस्तर में एक लाल लिफाफे में सात सिक्के डाल कर, सबसे नीचे रख दें एवं कनस्तर दक्षिण-पश्चिम में रखें, कनस्तर के चावल कभी भी खाली न होने दें। आधे शेष होने पर पुन: भर दें।
देखिये ! चावल के कनस्तर की तरह आपकी तिजोरी भी शायद भरी रहे, सदा के लिये।
सुशील कुमार मोहता
वास्तु परामर्शदाता एवं पायरा वास्तु विशेषज्ञ
Friday, July 23, 2010
देखन में छोटे लगे, घाव करे गंभीर
Posted by Sushil Kumar Mohta at 12:49 AM
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