* किसी भी घर या कार्यालय में, चाहे वह अपना हो अथवा किराये का, यहां तक कि होटल के कमरे में भी वास्तु पूर्ण रूप से प्रासंगिक होता है। जिस प्रकार अगर आप किसी नाव में यात्रा कर रहे हों एवं उसमें सुराख हो, तो वह नाव चाहे आपकी अपनी हो या किराये की हो, डूबने का खतरा तो रहता ही है।
* जिस प्रकार एक लम्बे चुम्बक के दो टुकड़े कर दिये जायें तो प्रत्येक टुकड़ा एक सम्पूर्ण चुम्बक बन जाता है, उसी प्रकार किसी भी भूखण्ड या मकान में विभाजित प्रत्येक भूखण्ड या कमरे का भी अपना चुम्बकीय क्षेत्र बन जाता है एवं छोटे से छोटे कक्ष में भी वास्तु के नियम समान रूप से लागू होते हैं।
* स्वस्तिक में अत्यधिक ऊर्जा होती है। सीधे स्वस्तिक में जितनी शुभ ऊर्जा होती है, उल्टे स्वस्तिक में उतनी ही अशुभ ऊर्जा होती है, अत: स्वस्तिक का प्रयोग अत्यन्त सोच समझ कर ही करना चाहिये।
* गणपति, लक्ष्मी एवं स्वस्तिक तो घर में स्थिर ही होने चाहिये। कमरों या अलमारियों के दरवाजों पर उनके स्टीकर या चित्र लगा कर, बार-बार दरवाजे खोलने या बन्द करने पर, जरा सोचिये क्या होता है ?
* घर की छत का सारा भार बीम झेलते हैं एवं बीम के नीचे लगातार बैठना या सोना, बोझ के कारण मानसिक तनाव का कारण बन सकता है। अगर बीम ढकने सम्भव न हो तो, उनके नीचे तीन पिरामिड लगाने पर यह दोष समाप्त प्रायः हो जाता है।
* अपने घर के पूजा के स्थान पर देवताओं की तस्वीरों को एक दूसरे के सामने या ऊपर-नीचे नहीं रखना चाहिये, थोड़ी थोड़ी दूर पर अगल-बगल ही रखना चाहिये।
* स्नानघर में लाल, नारंगी या हरे रंग की टाईल्स या पत्थर का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये। अग्नि तत्व के ये रंग, वहां व्याप्त जल तत्व के साथ तालमेल नहीं रख पाते एवं उपयोगकत्र्ता की मानसिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं।
* सोने चांदी के व्यवसायियों को दुकान में लाल या नारंगी रंग नहीं करवाना चाहिये। ये रंग अग्नि के प्रतीक है एवं अग्नि धातु को नष्ट करती है।
* टूटे दर्पण में शृंगार नहीं करना चाहिये, उन्हें यथाशीघ्र हटा देना या बदल देना चाहिये।
* शयनकक्ष की दीवार पर अधिक दिनों तक दरारें नहीं पड़ी रहने देनी चाहिये। बहुधा ये दरारें दीर्घ व्याधियों का कारण बन जाती है।
* मुख्य द्वार की देहरी एवं द्वार के आस पास की दीवारें टूटी-फूटी न रखें। भाग्य वृद्धि में यह विचित्र रूप से रुकावट पैदा कर सकती हैं। मुख्य द्वार के बाहर की दीवारों को स्वच्छ एवं सुन्दर रखें।
* नवविवाहित दम्पति को ईशान के कक्ष में नहीं सोना चाहिये। अगर मजबूरी वश सोना ही पड़े, तो पलंग या गद्दा ईशान से सटाकर कदापि नहीं लगाना चाहिये। पुरुष संतान प्राप्ति में यह दोष विशेष रूप से बाधक पाया जाता है।
* घर में जहाँ-तहाँ रखी अलमारियों पर लगे शीशे वहाँ की ऊर्जा को असंतुलित कर देते हैं। फलस्वरूप वास्तु सम्मत घर होते हुऐ भी वांछित समृद्धि एवं सफलता प्राप्त नहीं होती है।
* दरार पड़ी दीवारों पर देवी देवताओं के या परिवार के सदस्यों के चित्र न लगायें, यह टूटे पलंग पर आसीन होने के समान है।
* पूजा स्थान का प्रबन्ध ईशान में स्थापित करना एक परिपाटी सी बन गई है। परन्तु ईशान में पूजा का भारी ङ्क्षसहासन या अन्य सामान न रखें। यह दोष आपको कभी महसूस नहीं होता, फिर भी अपने विपरीत परिणाम देता है। पूजा स्थान मध्य पूर्व में ही सर्वोत्तम होता है।
* रसोई घर के ईशान कोण में चूल्हा सटाकर भोजन कदापि न बनायें, सम्पूर्ण प्रयास के बावजूद ,यह छोटा सा वास्तु-दोष धन की बरकत में बाधक बना रहता है।
* ईशान पुरुष सन्तान से सम्बन्धित दिशा है। घर या कमरे का ईशान जितना ही हल्का, खुला एवं स्वच्छ होगा, सन्तान उतनी ही आज्ञाकारी, मेधावी एवं उज्ज्वल होगी।
* कार्य की अधिकता के कारण कार्यालय की मेज के नीचे कागजात, फाइलें, किताबें, ब्रीफकेस रखना आजकल सामान्य बात हो गई है। जरा सोचिये, वहां झाड़ू एवं जूते चप्पल का स्पर्श भला व्यवसाय या अध्ययन में तरक्की दे सकता है ? छोटी छोटी लगने वाली उपरोक्त बातों के परिणाम मुझे अनेक स्थानों पर देखने को मिलते हैं, अत: इन असावधानियों से बचना ही उचित है। वास्तु-सम्मत मामूली से फेर बदल भी अत्यन्त अनुकूल परिणाम प्रदान करके आपके स्वास्थ्य, सुख एवं समृद्धि के कारक बन सकते हैं।
सुशील कुमार मोहता
वास्तु परामर्शदाता एवं पायरा वास्तु विशेषज्ञ
Sunday, July 4, 2010
वास्तु की छोटी सी बातों के बड़े परिणाम
Posted by Sushil Kumar Mohta at 5:29 AM
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