सन्तान न सिर्फ सर्वाधिक प्रिय एवं महत्वपूर्ण सम्पदा होती है वरन् हमारे परिवार का भविष्य एवं सपनों का महल भी होती है। प्रत्येक माता-पिता की यह सर्वोपरि आकांक्षा रहती है कि उनकी सन्तान श्रेष्ठतम शिक्षा प्राप्त करके जीवन में सफल, सुखी एवं समृद्ध रहे। अत: सामर्थ्यानुसार सभी माता-पिता अपनी सन्तान को यथासम्भव सुख-सुविधा एवं शिक्षा प्रदान करना अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य मानते हैं। बच्चों के विकास एवं चरित्र निर्माण में निश्चित रूप से माता-पिता एवं उनके शिक्षकों का योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है, परन्तु साथ-साथ अगर उन्हें बाल्यावस्था से ही वास्तु सम्मत अध्ययन की जगह एवं शयनकक्ष प्राप्त हो सके तो वे अत्यन्त प्रतिभाशाली, मेधावी एवं जिम्मेदार न कर माता पिता के सपनों को साकार कर सकते हैं, यह वास्तु विशेषज्ञ होने के नाते मेरा वर्षों का अनुभव एवं विश्वास है।
बाल्यावस्था से ही सन्तान के शयन एवं अध्ययन हेतु जहां तक सम्भव हो, अलग कमरों की ही व्यवस्था करनी चाहिये ताकि वे बिना किसी व्यवधान के शान्त एवं एकाग्र होकर स्वच्छन्द रूप से अध्ययन कर सकें। स्थानाभाव के कारण यद्यपि यह व्यवस्था सभी घरों में सम्भव नहीं हो पाती है, फिर भी थोड़ी सी सावधानी और कोशिश से बच्चों के शयन एवं अध्ययन की वास्तु सम्मत व्यवस्था की जा सकती है। अत: निम्नलिखित महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए :
* बाल्यावस्था में बच्चों के लिये पूर्व, उत्तर या उत्तर पूर्व के कक्ष उत्तम होते हैं एवं किशोरावस्था तथा विवाह योग्य आयु होने पर युवकों को मध्य-दक्षिण, मध्य-पश्चिम, मध्य-उत्तर के कमरे तथा युवतियों को उत्तर- पश्चिम या दक्षिण- पूर्व के कक्ष आवंटित करने चाहिये।
* विद्यार्थियों के कमरों में शयन की व्यवस्था दक्षिण या पश्चिम की दीवार के मध्य में अच्छी रहती है तथा अध्ययन की मेज उत्तर या पूर्व के मध्य में श्रेष्ठ रहती है। सोते समय सिर उत्तर को छोड़कर किसी भी दिशा में रखा जा सकता है परन्तु अध्ययन या अन्य कार्य करते समय पूर्व या उत्तर की तरफ मुख रखना चाहिये। कपड़ों एवं अन्यान्य सामान की आलमारी उत्तर-पश्चिम में तथा अध्ययन सम्बन्धी सामग्री की आलमारी दक्षिण-पश्चिम में रखनी चाहिये। उनके बैग, सर्टिफिकेट, एडमिट कार्ड, पदक आदि भी दक्षिण-पश्चिम की आलमारी में ही रखने चाहिये।
* विद्यार्थियों के शयन / अध्ययन कक्ष में पूर्व या उत्तर में खिड़कियां जरूर बनानी चाहिये एवं नित्य प्रात:काल सूर्य की किरणों एवं प्रकृति की ऊर्जा प्राप्ति हेतु इन खिड़कियों को अवश्य खोलना चाहिये। अगर स्थानाभाव के कारण वास्तु सम्मत श्रेष्ठ कमरों का आवंटन सम्भव न हो सके, तो अन्य कमरों के पूर्व या उत्तर में खिड़कियों या दरवाजों की व्यवस्था जरूर करनी चाहिये। बच्चों को दक्षिण-पश्चिम के कमरों में व्यवस्थित न करें, इससे उनके जिद्दी होने की सम्भावना रहती है।
वास्तु बना सकता है - जीरो से हीरो
* बच्चों के कमरों में ईशान (उत्तर-पूर्व) दिशा को स्वच्छ एवं हल्का रखें, वहाँ उनके पीने के पानी की व्यवस्था सर्वोत्तम होती है। परन्तु पानी की बोतलों में लाल, नारंगी या हरा रंग व्यवहार न करें। कम्प्यूटर टेबुल ईशान या नैऋत्य में न लगायें, अन्य स्थान पर लगा सकते हैं एवं विद्यार्थी को कार्य करते समय मुख पूर्व या उत्तर की तरफ रखना चाहिये, यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
* बच्चों के कमरों के दरवाजे के सामने अगर रसोई, टायलेट या स्टोर का दरवाजा हो तो बच्चों के कमरों के दरवाजे पर परदा लगा देना चाहिये या दोनों दरवाजों के बीच पिरामिड यन्त्र द्वारा विभाजन कर देना चाहिये। अध्ययन के समय उनकी पीठ के पीछे खिड़की हो तो उन्हें बंद रखना चाहिये एवं वहां परदे अवश्य लगाने चाहिये।
* अध्ययन की मेज के सामने की दीवार खाली न रखें, वहाँ बुद्धि प्रदाता गणपति एवं विद्या की देवी सरस्वती के चित्र लगायें एवं बच्चों में धार्मिक एवं सात्विक प्रवृति के विकास हेतु नित्य इन चित्रों के सामने अध्ययन प्रारम्भ करने के पूर्व प्रार्थना करने की प्रेरणा देवें।
* आजकल मेज के सामने पिन बोर्ड लगाने का प्रचलन है। पिन बोर्ड पर लगे कपड़े या कागज का रंग सफेद, भूरा या हल्का हरा रखें। वहाँ काले, लाल, नारंगी, बैंगनी रंग का व्यवहार न करें। मामूली सी लगने वाली यह बात अवांछित परेशानियों का कारण न सकती है।
* बच्चों के कमरों में भी हल्के गुलाबी, हल्के नीले, हल्के हरे, हल्के भूरे या आफ ह्वाइट रंगों का ही प्रयोग करें। उन कमरों में चादर अथवा परदों में भी उपरोक्त लिखे वर्जित रंगों का प्रयोग न करें, तो अच्छा है।
* अध्ययन की मेज पर, नीचे या आसपास जूठे बर्तन, जूते-चप्पल, गंदे कपड़े या अन्य बेकार की या टूटी-फूटी वस्तुऐं न रखें। उनके कपड़ों एवं किताबों की आलमारियों को स्वच्छ, व्यवस्थित एवं नियंत्रित रूप से सुसंगत रखें। कमरे में एक डस्टबिन अवश्य रखें।
* उनके पलंग के नीचे किताब- कापी, झाड़ू, कबाड़ आदि न रखें। उन्हें सोने के बिस्तर या खाने की टेबुल पर पढऩे से मना करें, अन्यथा उनकी एकाग्रता एवं स्मरणशक्ति क्षीण हो सकती है।
* विद्यार्थी के कमरे में जहाँ-तहाँ खिलौने, गुडि़या, खेल-कूद के सामान, पोस्टर आदि लगा कर उसे अजायबघर, गुडि़याघर या चिडि़याघर न बनाएं। इनकी नकारात्मक ऊर्जा का अत्यन्त प्रतिकूल प्रभाव उनकी मानसिकता एवं कार्यक्षमता पर पड़ सकता है। दीवारों पर विश्वविद्यालयों, महापुरुषों एवं प्रेरक सूक्तियों के चित्र या पोस्टर लगायें।
उपाय
* विद्यार्थी की बुद्धि, स्मरणशक्ति, लगन एवं एकाग्रता के विकास हेतु उन्हें आकाश एवं पृथ्वी तत्व की ऊर्जा की समानुपातिक प्राप्ति अत्यन्त आवश्यक होती है। इन ऊर्जाओं को प्रदान करने में पिरामिड यन्त्रों के व्यवहार से आश्चर्यजनक सफलता मिल सकती है। 'पायरा कार्डÓ, 'स्टडी सीटÓ एवं एजूकेशन टावर जैसे शिक्षा सम्बन्धी पिरामिड यन्त्रों का प्रयोग मैंने स्वयं अनेक विद्यार्थियों पर किया है एवं मुझे अत्यन्त लाभप्रद एवं चमत्कारी परिणाम प्राप्त हो रहे हैं। शायद इसीलिये लोग कहते हैं - वास्तु बना सकता है, जीरो से हीरो।
सुशील कुमार मोहता
वास्तु परामर्शदाता एवं पायरा वास्तु विशेषज्ञ
Thursday, August 5, 2010
सन्तान की सफलता के आजमाये सूत्र
Posted by Sushil Kumar Mohta at 12:10 AM 0 comments
Saturday, July 31, 2010
GREAT TIME WITH PROF. DR. JITEN BHATT & FAMILY
It was a great pleasure to have shared my experiences of VASTU CORRECTION BY PYRAMIDS at the PYRA VASTU WORKSHOP at NEWDELHI.All the participants in the workshop were so happy to know about the practicality of VASTU CORRECTION with so easy a method without changing the shape or size of their or their clients' place.
DR.JITEN BHATT and MRS.BHATT individually charged My PYRA CARD with FA-MAA. This is a PYRAMID YANTRA which I never forget to keep in my pocket and it helps me in a very wonderful way in all aspects of my life. Oh! My PYRA CARD has started giving me superb results after being charged by DR. & MRS. JITEN BHATT for which I can't thank them enough.It was such a great time to be with these three wonderful people who are helping lakhs of people with their PYRA ENERGY across the world.
Posted by Sushil Kumar Mohta at 10:16 PM 0 comments
A few days back returned from VADODARA having One to One discussion and experiments with World Famous PYRA VASTU MASTER PROF. DR. JITEN BHATT. It was indeed great to have EASY SOLUTIONS for CORRECION OF VERY DIFFICULT VASTU PROBLEMS with PYRAMID YANTRAS which otherwise were so difficult without demolition or further construction.I have experimented them at many places here in Kolkata and the results are really fantastic.
It was a great pleasure to receive A FORTUNE SEAT as a gift from Dr. Bhatt. Oh! My efficiency and working has improved so much after I have started sitting on this FORTUNE SEAT during my creative work. It is indeed one of the most invaluable innovation of Dr. Bhatt and I would recommend it for those who wish to improve their efficiency, talent and FORTUNE in life.
Dr. Dhara Bhatt gave so important information about SMART BREADTH ( A great breathing technique for overall well being) and provided me with her latest CD for the same. It is a great technique of breathing which she has developed with her excellence in this field as a Proficient Doctor and Rekie Expert which can be very useful for one and all.
Feel Free to mail me your queries about Vastu & Pyra Vastu on my EMAIL: sushilmohta@yahoo.co.in. It will be a pleasure to share my experience with you with best possible solutions.
With Best Wishes!
Sushil Kumar Mohta
Posted by Sushil Kumar Mohta at 6:51 AM 0 comments
Friday, July 30, 2010
वास्तु संबंधित प्राय: पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न : वास्तु विज्ञान किन तत्वों पर आधारित है?
उत्तर : वास्तु शास्त्र जैव शक्ति, गुरुत्वाकर्षण शक्ति, पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र, वायु की गति एवं ब्रह्माण्डीय तरंगों पर आधारित विज्ञान है।
प्रश्न : क्या वास्तु के नियम सभी लोगों पर लागू होते हैं?
उत्तर : उपरोक्त प्राकृतिक शक्तियां, तरंगें, गति एवं क्षेत्र भला भेदभाव करना कहां जानती हैं। इनके लिए अमीर-गरीब, शिक्षित-गंवार, छोटा-बड़ा, हिंदू-मुस्लिम सभी बराबर हैं। अत: वास्तु के नियम किसी भी स्थान पर निष्पक्ष रूप से सभी पर लागू होते हैं।
प्रश्न : अनेक लोग वास्तु के नियमों के प्रतिकूल रहने पर भी बिना किसी कठिनाई के जीवन व्यतीत करते हैं?
उत्तर : अनेक लोग वास्तु के नियमों की तब तक परवाह नहीं करते हैं, जब तक उनका समय अनुकूल रहता है एवं धन अथवा बल से उन्हें जीवन की हर समस्या को सुलझाने का विश्वास रहता है, परंतु तीव्र वास्तु दोष रहने पर ऐसी स्थितियां सदैव नहीं रहती हैं। समय के प्रतिकूल होते ही घातक बीमारियां या अप्रत्याशित दुर्घटनाएं जीवन में अनायास प्रवेश कर जाती हैं, अधिकांश लोगों को तभी वास्तु के नियमों का आभास होता है। परंतु वास्तु सम्मत निवास स्थान पर ऐसी दुष्कर परिस्थितियों की संभावना न्यूनतम अथवा क्षीण होती है।
प्रश्न : घर का ईशान कोना (उत्तर पूर्व) क्यों पवित्र माना जाता है? हमें उसे क्यों खुला रखना चाहिए?
उत्तर : पृथ्वी के 22 डिग्री झुके होने के कारण मकान के उत्तर पूर्वी कोने को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। सुबह के समय जब सूर्य पृथ्वी से अधिकतम दूरी पर होता है तो केवल इंफ्रा रेड किरणें ही धरती तक पहुंच पाती हैं, जो मानव शरीर के लिए अत्यंत लाभदायक होती हैं। अत: उत्तर पूर्व भाग के खुला होने से लाभदायक इंफ्रा रेड किरणों को घर में आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न : क्या केवल उत्तर या पूर्व दिशा वाले प्लाट या दरवाजे ही अच्छे होते हैं?
उत्तर : मकान का द्वार बनाने के लिए दक्षिण पश्चिम (नैऋत्य) को छोड़कर प्राय: सभी दिशाएं कमोबेश रूप से उचित हैं। परंतु सभी मकानों में आकृति एवं आंतरिक सज्जा महत्वपूर्ण होती है। वास्तु सम्मत अनुकूल आकार एवं सज्जा द्वारा सभी दिशाओं के प्रवेश द्वार को सकारात्मक बनाया जा सकता है।
प्रश्न : क्या मंदबुद्धि, स्फूर्तिहीन या ढीले ढाले विद्यार्थियों को वास्तु से सहायता मिल सकती है?
उत्तर : वास्तु सम्मत परिवर्तन करके मैंने स्वयं अनेक छात्र-छात्राओं की अध्ययनशीलता एवं स्मरणशक्ति में चमत्कारी परिणाम प्राप्त किये हैं। विशेषकर शिक्षा संबंधित पिरामिड यंत्रों की स्थापना एवं प्रयोग से विद्यार्थियों को आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त होती है। यह मेरा स्वयं का अनुभव है।
प्रश्न : क्या पूजा-पाठ से वास्तु दोष दूर किये जा सकते हैं?
उत्तर : यदि आपकी गाड़ी का चक्का पंचर हो गया है तो आपको पूजा-पाठ करने की जगह किसी मिस्त्री को बुलाना पड़ेगा। 'वास्तु शास्त्रÓ भू शक्तियों का विज्ञान है। पूजा-पाठ, जप-तप, तंत्र-मंत्र से वास्तु दोष का निवारण भला कैसे हो सकता है?
प्रश्न : क्या गृहस्थों के लिए पूजा-पाठ का कोई फायदा नहीं है?
उत्तर : श्रद्धा-विश्वास एवं आस्था से की गयी पूजा एवं भक्ति निश्चित रूप से साधक को परमपिता परमेश्वर का कृपा पात्र बनाती है एवं उसे जीवन में धैर्य, संतोष, शक्ति तथा शांति जैसे गुण प्रदान करती है, फलत: उसके कर्म भी कल्याणप्रद बन जाते हैं एवं जीवन सुखद हो सकता है। परंतु पूजा एवं भक्ति का मार्ग अत्यंत जटिल है एवं एकाग्रता तथा निरंतरता से ही परिणाम मिलते हैं।
प्रश्न : क्या वास्तु विवाह संबंधित समस्याओं में भी सहायक बन सकता है?
उत्तर : अगर विवाह योग्य पात्र गलत कमरों में, गलत स्थितियों, गलत वातावरण में निवास या शयन करते हैं तो उनके विवाह में विभिन्न प्रकार की बाधाएं आना सामान्य बात हैं। शयनकक्ष में वास्तु दोष होने पर वैवाहिक जीवन में भी सामंजस्य की कमी होती है। वास्तु विशेषज्ञ की सहायता लेकर इन समस्याओं का निदान किया जा सकता है।
प्रश्न : तमाम कोशिशों के बावजूद हम अपना दोष युक्त घर नहीं बदल पा रहे हैं?
उत्तर : निवास स्थल अथवा कार्य स्थल पर प्रचण्ड वास्तु दोष होने पर स्थिति इतनी नकारात्मक हो जाती है कि समस्त प्रयासों के बावजूद लोगों को घर या दुकान बदलने में सफलता नहीं मिलती है, ऐसी स्थिति में अस्थायी रूप से वास्तु सम्मत निवास में स्थानांतरण करने पर अत्यंत अनुकूल परिणाम मिल सकते हैं एवं सभी प्रयासों में आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त हो सकती है।
प्रश्न : आखिर वास्तु सम्मत स्थान पर निवास या व्यवसाय किया जाय तो क्या परिणाम मिल सकते हैं?
उत्तर : यह एक सर्वमान्य यथार्थ है कि जो लोग वास्तु सम्मत स्थान पर निवास एवं कार्य करते हैं, उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं आनन फानन नहीं आती हैं। परिवार में शान्ति, सन्तोष एवं सौहार्द की प्रवृत्ति रहती है तथा ईष्र्यालु लोगों की नजरों से भी बचाव होता है। जीवन में मददगार मित्र एवं अच्छे रिश्तेदार मिलते हैं तथा सुख व समृद्धि सदैव सहज हासिल होती है।
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Posted by Sushil Kumar Mohta at 12:26 AM 0 comments
Friday, July 23, 2010
आशियाना नहीं बनता है, जिन्दगी में बार-बार
सुरसा के मुख की तरह बढ़ती जनसंख्या के फलस्वरूप, सम्पूर्ण विश्व में, विशेषकर विकासशील देशों के शहरों एवं कस्बों में प्राचीन स्थपत्य कला के अनुसार भवन निर्माण हेतु उपयुक्त भूमि का दिन-प्रतिदिन अभाव होता जा रहा है। जो भी वास्तु-सम्मत भूमि उपलब्ध है, वह इतनी महंगी हो गई है कि उसे खरीद कर वहां मकान बनाना सामान्य व्यक्ति के लिये असम्भव सा हो गया है। भूमि की इस कमी का ही परिणाम है - बहुमंजिली इमारतों (फ्लैट सिस्टम) का निर्माण। भारतीय वास्तु शास्त्र में वर्णित आश्चर्यजनक एवं कल्याणकारी सूत्रों को लेकर आज समस्त विश्व में शोध हो रहे हैं एवं वास्तु के प्रति एक नयी चेतना का सृजन हो रहा है।
अमेरिका, जर्मनी, हांगकांग, सगापुर जैसे आधुनिक एवं विकसित देशों में भी वास्तु पद्धति के अनुसार निर्माण को प्राथमिकता दी जा रही है। अमेरिका के लास एंजिलिस शहर में भारतीय स्थापत्य कला के अनुसार विश्व का पहला भवन बनाया गया है। हांगकांग, सिंगापुर जैसे शहरों में तो जमीन खरीदने के बाद बिल्डर एवं प्रोमोटर, पहले वास्तु-शास्त्री से सलाह करते हैं, फिर आर्किटेक्ट को कार्य सौंपते हैं। मलेशिया एवं सिंगापुर की यात्रा के दौरान, वहां के लोगों की वास्तु-कला के प्रति रुचि, मान्यता एवं जागरूकता देखकर मुझे अत्यन्त सुखद आश्चर्य हुआ और यह महसूस हुआ कि शायद इसलिये समृद्धि एवं खुशी इनके जीवन में सहज ही उपलब्ध है। हालांकि महानगरों में निर्मित बहुमंजिली इमारतों या मकानों में वास्तु-नियमों का शत-प्रतिशत पालन करना अत्यन्त जटिल होता है, फिर भी निर्माण के पूर्व उचित मार्गदर्शन लेकर बिल्डर एवं प्रमोटर ऐसे फ्लैटों की संरचना अत्यन्त आसानी से कर सकते हैं, जिससे उनका पैसा कमाने का मकसद भी पूरा हो सके और उनके खरीददार भी स्वस्थ एवं सुखी जीवन बिता सकें।
वास्तु-दोष से युक्त फ्लैट, जीवन में अनेक कठिनाईयों एवं कष्ट का कारण बन सकते हैं, जीवन भर की कमाई से अपने सपनों का संसार बसाने के पहले जरा गौर करें -
* कहीं आपके मकान के पूर्व एवं उत्तर की अपेक्षा पश्चिम एवं दक्षिण में अधिक खाली जगह तो नहीं है ?
* कहीं आपके फ्लैट के पश्चिम या दक्षिण दिशा में तालाब या नदी तो नहीं है, यह दोष विशेष कर नीचे की मंजिल पर रहने वालों को अधिक प्रभावित करता हैं।
* कहीं आपके मकान का मुख्य द्वार एवं अहाते की चारदीवारी, दोनों ही नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) में तो नहीं है ?
* कहीं आपके मकान की भूगर्भीय पानी की टंकी आग्नेय या नैऋत्य दिशा में तो नहीं है, ऐसी स्थिति में विशेषज्ञ की सलाह लेकर उसका निदान जरूर करवायें।
* कहीं आपके बंगले या फ्लैट की चारदीवारी विभिन्न दिशाओं में कटी या बढ़ी हुई तो नहीं है, ऐसी स्थिति अवांछित परेशानियों का कारण न सकती है।
* कहीं आपकी मंजिल की लिफ्ट या सीढ़ी का समावेश आपके फ्लैट की चारदीवारी के अन्दर तो नहीं कर दिया गया हैं ? यह अत्यन्त गम्भीर वास्तु-दोष हो सकता है।
* आपके डुपलेक्स फ्लैट की सीढ़ी कहीं ईशान या ब्रह्मस्थान पर तो नहीं है ?
* कहीं आपके फ्लैट या मकान में उत्तर एवं पूर्व का हिस्सा बन्द दीवारों से तो नहीं ढंका है, ऐसी स्थिति में वहां के निवासी अत्यावश्यक प्राकृतिक ऊर्जा से वंचित रह जाते हैं।
* कहीं आपके घर में जहां-तहां ऊंचे चबूतरों का निर्माण करके वहां टायलेट तो नहीं बना दिये गये हैं ? ऐसी स्थिति गृह-स्वामी को स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों से ग्रस्त रख सकती है ?
* कहीं आपकी पहली या दूसरी मंजिल के फ्लैट में मुख्य द्वार या खिड़कियों के सामने ट्रांसफार्मर या मोबाइल फोन के टावर तो नहीं लगे हैं ?
* कहीं आपके मकान में रसोई, टायलेट, पूजाघर का निर्माण अगल-बगल या आमने-सामने तो नहीं किया गया है, साधारण सा लगने वाला यह दोष अत्यन्त नकारात्मक स्थिति पैदा कर सकता है।
* कहीं आपके फ्लैट की चारदीवारी के अन्दर खोखलापन तो नहीं, जो आपके जीवन में खोखलापन नहीं ला दे ?
'कैसा भी बना दो, माल तो बिक ही जायेगा, की मानसिकता के कारण ही ऐसे दोष-युक्त मकानों या फ्लैटों का निर्माण कर दिया जाता है। फलस्वरूप, बनाने वाले तो येन-केन प्रकारेण अपनी तिजोरी भर लेते हैं, परन्तु वहां रहने वालों का सपनों का महल बस सपना ही बन कर रह जाता है, अत: दोस्तों घर नया बसाने के पहले, परखें वास्तु-विकार। आशियाना बनता नहीं है, जिन्दगी में बार-बार।
जरा आजमा कर तो देखें -
अपने फ्लैट या कार्यस्थल के मध्यस्थल (ब्रह्मस्थान) पर नित्य धातु के किसी पात्र में कपूर जला कर, अग्नि देवता से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने की प्रार्थना करें,
देखिये ! जीवन में दिन-प्रतिदिन कैसा सकारात्मक परिवर्तन प्राप्त होता है। अगर यह क्रिया ''पिरामिड यंत्र में सम्पादित की जाये, तो आश्चर्यजनक परिणाम मिल सकते हैं।
-सुशील कुमार मोहता
वास्तु परामर्शदाता एवं पायरा वास्तु विशेषज्ञ
Posted by Sushil Kumar Mohta at 1:09 AM 0 comments
देखन में छोटे लगे, घाव करे गंभीर
सम्पूर्ण विश्व में तेजी से फैलते वास्तु-शास्त्र के महत्व एवं महत्ता ने यह स्थापित कर दिया है कि मानव जीवन में तनाव, बीमारी, असफलता, अनबन एवं असंतोष जैसी अनेक समस्याओं का कारण मूलत: वास्तु के नियमों की प्रतिकूलता होती है। जितने गहरे वास्तु दोष किसी स्थान पर होते हैं, उतनी ही समस्याऐं वहां के निवासियों को त्रस्त करती रहती हैं। अधिकांशत:, वास्तु-दोषों से अवगत होते हुए भी लोग तोड़-फोड़ के डर से, अनहोनी के डर से या वास्तु-विशेषज्ञ की फीस के डर से टाल मटोल करते रहते हैं एवं असमंजसवश निर्णय लेनें में बरसों लगा देते हैं।
परिणामस्वरूप, नकारात्मकता उनके जीवन का हिस्सा न जाती है एवं वे आसानी से प्राप्य सुख एवं समृद्धि से वंचित रह जाते हैं। छोटी-छोटी एवं नगण्य लगने वाली वास्तु सम्बन्धी असावधानियों आपके जीवन में उथल-पुथल मचाकर रख सकती हैं। अगर आपको भी लगता है कि जीवन में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है, तो जरा गौर करें -
* कहीं आपने दक्षिण-पूर्व के कमरे में नीला एवं उत्तर-पूर्व के कमरे में नारंगी या लाल रंग तो नहीं करवा रखा है ?
*कहीं आपने चंदन या कुंकुम के छींटे मार-मार कर देवी-देवताओं के नयन एवं चेहरे तो नहीं ढंक दिये हैं।
* कहीं आपने गणेश-लक्ष्मी या लाफिंग बुद्ध को आलमारी में बन्द करके तो नहीं रखा है?
* कहीं आपने पलंग के सिरहाने में दर्पण तो नहीं जड़वा रखे हैं ?
* कहीं आपने घर की दीवारों पर तितलियों के चित्र तो नहीं टांग रखे हैं ?
* कहीं आपने शयन कक्ष में अकेली या उदास औरत के चित्र या शो-पीस तो नहीं सजा रखे हैं?
* कहीं आपके घर, कार्यालय या कारखाने के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) का फर्श अन्य दिशाओं के फर्श से ऊंचा तो नहीं है?
* कहीं आपने ईशान कोण या उत्तर मध्य के कमरों में कबाड़ तो नहीं भर रखा है ?
* कहीं वे कमरे बहुधा अन्धकारमय तो नहीं रहते हैं?
* कहीं आपके घर के दक्षिण-पश्चिम का हिस्सा अन्य दिशाओं की अपेक्षा हल्का, खुला एवं नीचे तो नहीं है ?
* कहीं आपके फ्लैट या मकान का उत्तर-पूर्व, उत्तर, दक्षिण-पूर्ण, दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम कोना कटा हुआ तो नहीं है?
* कहीं आप पूजा के बहाने नित्य ईशान में हवन तो नहीं करते हैं ?
* कहीं आपने ईशान में भारी-भरकम चबूतरा या पत्थरों का मंदिर तो नहीं बनवा रखा है ?
* कहीं आपके ईशान एवं उत्तर को फ्लाई ओवर, रेलवे पुल या ऊंची इमारतें व्यवधान तो नहीं पहुंचा रही हैं ?
* कहीं आपके मकान के ब्रह्मस्थान (मध्य) में बोर वेल, भूगर्भ पानी की टंकी या कुंआ तो नहीं है?
* कहीं आपने मुख्य द्वार के आस-पास नुकीले पौधे या जूतों की आलमारी तो नहीं लगा रखी है ?
* कहीं आपने अपने घर में जहाँ-तहाँ विभिन्न प्रकार के दर्पण तो नहीं लगा रखे हैं ?
* कहीं आपके घर की छत पर ईशान कोण में पानी की टंकी तो नहीं है ?
* कहीं आपके घर के दरवाजे या खिड़की के सामने मन्दिर, मस्जिद या कब्रिस्तान तो नहीं है?
* कहीं आपने ईशान के कमरे का पलंग ईशान की दीवार से तो नहीं लगा रखा है?
* कहीं आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) के कोने में आप दक्षिण-पूर्व की दीवार के साथ लगे बिस्तर पर तो नहीं सोते हैं?
* कहीं आपकी रसोई में सिंक एवं चूल्हा पास-पास तो नहीं है?
अगर उपरोत्त प्रश्नों में से किसी भी प्रश्न का जवाब अगर.. हाँ.. में है, तो निश्चित रूप से वास्तु-दोष आपके जीवन में स्वास्थ्य, सुख एवं समृद्धि के मार्ग में बाधक बन रहा है।
भली-भांति समझकर, उनका निदान कीजिये।
जरा आजमा कर देखें -
अपनी रसोई के चावल के कनस्तर में एक लाल लिफाफे में सात सिक्के डाल कर, सबसे नीचे रख दें एवं कनस्तर दक्षिण-पश्चिम में रखें, कनस्तर के चावल कभी भी खाली न होने दें। आधे शेष होने पर पुन: भर दें।
देखिये ! चावल के कनस्तर की तरह आपकी तिजोरी भी शायद भरी रहे, सदा के लिये।
सुशील कुमार मोहता
वास्तु परामर्शदाता एवं पायरा वास्तु विशेषज्ञ
Posted by Sushil Kumar Mohta at 12:49 AM 0 comments
Wednesday, July 21, 2010
ब्रह्मस्थल है,आपके घर का मर्म स्थल
आकाश हमारा पिता है, जो हमें सुरक्षा प्रदान करता है एवं पृथ्वी हमारी माता है जो हमें संरक्षण प्रदान करती है। मानव इन दोनों पालनकर्ता शक्तियों के मध्य में स्थित है एवं उसकी सम्पूर्ण गतिविधियाँ आकाश एवं पृथ्वी की ऊर्जा से पूर्णतया प्रभावित रहती है। अन्तरिक्ष एवं धरती की इस चेतना को उजागर करता है वास्तु। पृथ्वी की चुम्बक हैं। इन दो शक्तिशाली ऊर्जाओं की चेतना का स्पंदन एवं परस्पर सम्बन्ध अत्यन्त विलक्षण है, जो किसी भी स्थान पर निवास या कार्य करने वाले मनुष्य तथा उसके आसपास की जड़ अथवा चेतन वस्तुओं को अदृश्य परन्तु अद्भुत रूप से प्रभावित करने की क्षमता रखता है। पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि एवं वायु इन पंचतत्वों तथा दसों दिशाओं के कल्याणकारी सूत्र एवं सिद्धान्त ही वास्तु शास्त्र की मूल अवधारणा है। प्रकृति के इन नियमों का पालन मनुष्य किस तरह शारीरिक एवं मानसिक विकास हेतु करके सुखी एवं सम्पन्न रहे, यही वास्तु शास्त्र की नींव है। किसी भी निर्मित अथवा खुले स्थल का केन्द्र बिन्दु उस स्थान का हृदय होता है एवं पायरा विज्ञान की भाषा में इसे पायरा सेन्टर कहते हैं। यह केन्द्र बिन्दु अत्यन्त सूक्ष्म परन्तु सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। प्रकृति के पंचतत्वों की ऊर्जा विभिन्न दिशाओं से आकर किसी भी स्थल के केन्द्र विन्दु पर ही एकत्रित होती है एवं वहीं से अपने निर्दिष्ट स्थान को प्रभावित करती है। वास्तु मे यह केन्द्र बिन्दु ब्रह्मस्थान कहलाता है। अत: प्रत्येक स्थान, जहाँ हम निवास अथवा कार्य करते हैं, वहां के ब्रह्मस्थान को स्वच्छ एवं सुरक्षित रखना परम आवश्यक होता है। पौराणिक दृष्टिकोण से भी देखें तो ब्रह्म स्थान, यानी ब्रह्मा का स्थल। ब्रह्मा के चार सिर हैं और उसी प्रकार किसी भी स्थान का ब्रह्म स्थल मध्य में स्थित रह कर ब्रह्मा की तरह उस स्थान के चतुर्दिक देखता है। किसी भी दिशा के दोषपूर्ण होने पर अगर उस दिशा से प्राप्य ऊर्जा अगर ब्रह्मस्थल तक नहीं पहुंचती हैं तो स्वभावत: ब्रह्मस्थल की लाभकारी दृष्टि से वह दिशा वंचित रह जाती है। फलत: वहाँ नकारात्मक ऊर्जा व्याप्त होकर वहाँ के निवासियों के जीवन को अपने स्वाभावानुसार प्रभावित करके कष्ट एवं दु:ख का कारण न जाती है। साधारण सी बात है। किसी भी देश, राज्य, शहर का संचालन वहाँ का केन्द्र ही करता है। सहज रूप से समझें तो भारत का केन्द्र 'दिल्ली, पश्चिम बंगाल का केन्द्र 'कोलकाता और कोलकाता का केन्द्र 'रायटर्स बिल्डिग। जहाँ केन्द्र की नजर नहीं पड़ती, वहाँ क्या हालत रहती है यह सभी जानते है। अत: केन्द्र की कृपादृष्टि ही सर्वोपरि कही जा सकती है।
- सुशील कुमार मोहता, वास्तु परामर्शदाता एवं पायरा वास्तु विशेषज्ञ
Posted by Sushil Kumar Mohta at 12:12 AM 0 comments
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