सन्तान न सिर्फ सर्वाधिक प्रिय एवं महत्वपूर्ण सम्पदा होती है वरन् हमारे परिवार का भविष्य एवं सपनों का महल भी होती है। प्रत्येक माता-पिता की यह सर्वोपरि आकांक्षा रहती है कि उनकी सन्तान श्रेष्ठतम शिक्षा प्राप्त करके जीवन में सफल, सुखी एवं समृद्ध रहे। अत: सामर्थ्यानुसार सभी माता-पिता अपनी सन्तान को यथासम्भव सुख-सुविधा एवं शिक्षा प्रदान करना अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य मानते हैं। बच्चों के विकास एवं चरित्र निर्माण में निश्चित रूप से माता-पिता एवं उनके शिक्षकों का योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है, परन्तु साथ-साथ अगर उन्हें बाल्यावस्था से ही वास्तु सम्मत अध्ययन की जगह एवं शयनकक्ष प्राप्त हो सके तो वे अत्यन्त प्रतिभाशाली, मेधावी एवं जिम्मेदार न कर माता पिता के सपनों को साकार कर सकते हैं, यह वास्तु विशेषज्ञ होने के नाते मेरा वर्षों का अनुभव एवं विश्वास है।
बाल्यावस्था से ही सन्तान के शयन एवं अध्ययन हेतु जहां तक सम्भव हो, अलग कमरों की ही व्यवस्था करनी चाहिये ताकि वे बिना किसी व्यवधान के शान्त एवं एकाग्र होकर स्वच्छन्द रूप से अध्ययन कर सकें। स्थानाभाव के कारण यद्यपि यह व्यवस्था सभी घरों में सम्भव नहीं हो पाती है, फिर भी थोड़ी सी सावधानी और कोशिश से बच्चों के शयन एवं अध्ययन की वास्तु सम्मत व्यवस्था की जा सकती है। अत: निम्नलिखित महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए :
* बाल्यावस्था में बच्चों के लिये पूर्व, उत्तर या उत्तर पूर्व के कक्ष उत्तम होते हैं एवं किशोरावस्था तथा विवाह योग्य आयु होने पर युवकों को मध्य-दक्षिण, मध्य-पश्चिम, मध्य-उत्तर के कमरे तथा युवतियों को उत्तर- पश्चिम या दक्षिण- पूर्व के कक्ष आवंटित करने चाहिये।
* विद्यार्थियों के कमरों में शयन की व्यवस्था दक्षिण या पश्चिम की दीवार के मध्य में अच्छी रहती है तथा अध्ययन की मेज उत्तर या पूर्व के मध्य में श्रेष्ठ रहती है। सोते समय सिर उत्तर को छोड़कर किसी भी दिशा में रखा जा सकता है परन्तु अध्ययन या अन्य कार्य करते समय पूर्व या उत्तर की तरफ मुख रखना चाहिये। कपड़ों एवं अन्यान्य सामान की आलमारी उत्तर-पश्चिम में तथा अध्ययन सम्बन्धी सामग्री की आलमारी दक्षिण-पश्चिम में रखनी चाहिये। उनके बैग, सर्टिफिकेट, एडमिट कार्ड, पदक आदि भी दक्षिण-पश्चिम की आलमारी में ही रखने चाहिये।
* विद्यार्थियों के शयन / अध्ययन कक्ष में पूर्व या उत्तर में खिड़कियां जरूर बनानी चाहिये एवं नित्य प्रात:काल सूर्य की किरणों एवं प्रकृति की ऊर्जा प्राप्ति हेतु इन खिड़कियों को अवश्य खोलना चाहिये। अगर स्थानाभाव के कारण वास्तु सम्मत श्रेष्ठ कमरों का आवंटन सम्भव न हो सके, तो अन्य कमरों के पूर्व या उत्तर में खिड़कियों या दरवाजों की व्यवस्था जरूर करनी चाहिये। बच्चों को दक्षिण-पश्चिम के कमरों में व्यवस्थित न करें, इससे उनके जिद्दी होने की सम्भावना रहती है।
वास्तु बना सकता है - जीरो से हीरो
* बच्चों के कमरों में ईशान (उत्तर-पूर्व) दिशा को स्वच्छ एवं हल्का रखें, वहाँ उनके पीने के पानी की व्यवस्था सर्वोत्तम होती है। परन्तु पानी की बोतलों में लाल, नारंगी या हरा रंग व्यवहार न करें। कम्प्यूटर टेबुल ईशान या नैऋत्य में न लगायें, अन्य स्थान पर लगा सकते हैं एवं विद्यार्थी को कार्य करते समय मुख पूर्व या उत्तर की तरफ रखना चाहिये, यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
* बच्चों के कमरों के दरवाजे के सामने अगर रसोई, टायलेट या स्टोर का दरवाजा हो तो बच्चों के कमरों के दरवाजे पर परदा लगा देना चाहिये या दोनों दरवाजों के बीच पिरामिड यन्त्र द्वारा विभाजन कर देना चाहिये। अध्ययन के समय उनकी पीठ के पीछे खिड़की हो तो उन्हें बंद रखना चाहिये एवं वहां परदे अवश्य लगाने चाहिये।
* अध्ययन की मेज के सामने की दीवार खाली न रखें, वहाँ बुद्धि प्रदाता गणपति एवं विद्या की देवी सरस्वती के चित्र लगायें एवं बच्चों में धार्मिक एवं सात्विक प्रवृति के विकास हेतु नित्य इन चित्रों के सामने अध्ययन प्रारम्भ करने के पूर्व प्रार्थना करने की प्रेरणा देवें।
* आजकल मेज के सामने पिन बोर्ड लगाने का प्रचलन है। पिन बोर्ड पर लगे कपड़े या कागज का रंग सफेद, भूरा या हल्का हरा रखें। वहाँ काले, लाल, नारंगी, बैंगनी रंग का व्यवहार न करें। मामूली सी लगने वाली यह बात अवांछित परेशानियों का कारण न सकती है।
* बच्चों के कमरों में भी हल्के गुलाबी, हल्के नीले, हल्के हरे, हल्के भूरे या आफ ह्वाइट रंगों का ही प्रयोग करें। उन कमरों में चादर अथवा परदों में भी उपरोक्त लिखे वर्जित रंगों का प्रयोग न करें, तो अच्छा है।
* अध्ययन की मेज पर, नीचे या आसपास जूठे बर्तन, जूते-चप्पल, गंदे कपड़े या अन्य बेकार की या टूटी-फूटी वस्तुऐं न रखें। उनके कपड़ों एवं किताबों की आलमारियों को स्वच्छ, व्यवस्थित एवं नियंत्रित रूप से सुसंगत रखें। कमरे में एक डस्टबिन अवश्य रखें।
* उनके पलंग के नीचे किताब- कापी, झाड़ू, कबाड़ आदि न रखें। उन्हें सोने के बिस्तर या खाने की टेबुल पर पढऩे से मना करें, अन्यथा उनकी एकाग्रता एवं स्मरणशक्ति क्षीण हो सकती है।
* विद्यार्थी के कमरे में जहाँ-तहाँ खिलौने, गुडि़या, खेल-कूद के सामान, पोस्टर आदि लगा कर उसे अजायबघर, गुडि़याघर या चिडि़याघर न बनाएं। इनकी नकारात्मक ऊर्जा का अत्यन्त प्रतिकूल प्रभाव उनकी मानसिकता एवं कार्यक्षमता पर पड़ सकता है। दीवारों पर विश्वविद्यालयों, महापुरुषों एवं प्रेरक सूक्तियों के चित्र या पोस्टर लगायें।
उपाय
* विद्यार्थी की बुद्धि, स्मरणशक्ति, लगन एवं एकाग्रता के विकास हेतु उन्हें आकाश एवं पृथ्वी तत्व की ऊर्जा की समानुपातिक प्राप्ति अत्यन्त आवश्यक होती है। इन ऊर्जाओं को प्रदान करने में पिरामिड यन्त्रों के व्यवहार से आश्चर्यजनक सफलता मिल सकती है। 'पायरा कार्डÓ, 'स्टडी सीटÓ एवं एजूकेशन टावर जैसे शिक्षा सम्बन्धी पिरामिड यन्त्रों का प्रयोग मैंने स्वयं अनेक विद्यार्थियों पर किया है एवं मुझे अत्यन्त लाभप्रद एवं चमत्कारी परिणाम प्राप्त हो रहे हैं। शायद इसीलिये लोग कहते हैं - वास्तु बना सकता है, जीरो से हीरो।
सुशील कुमार मोहता
वास्तु परामर्शदाता एवं पायरा वास्तु विशेषज्ञ
Thursday, August 5, 2010
सन्तान की सफलता के आजमाये सूत्र
Posted by Sushil Kumar Mohta at 12:10 AM 0 comments
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